किसान बोले-"इतने सख्त कानून तो अंग्रेजी हुकूमत में भी नही थे" हैं भी तो सिर्फ किसानों के लिए ही क्यों?
आज की तारीख में भारत के कानून किसानों को काफी परेशान किए हुए हैं। वे अपने खेत में पराली जलाते हैं तो तुरंत ही एफ आई आर दर्ज कर दी जाती है। जुर्माना लगाने जेल भेजने जैसी उत्पीड़न कार्रवाई भी इसमें शामिल है।
इससे अच्छा था अंग्रेजों का जमाना
बुजुर्गों का कहना है कि इतने सख्त कानून तो अंग्रेज भी किसानों के लिए नहीं लेकर आए थे जितना आज की हुकूमत अपना रही है। किसान पराली वाले इस आदेश के खिलाफ धरना प्रदर्शन तो कर ही रहे हैं कोर्ट जाने की भी तैयारी कर रहे हैं। यह बात अलग है कि पर्यावरण प्रदूषित होना बताकर उन्हें वहां से भी राहत ना मिले परंतु दूसरा पहलू यह भी है कि यह कानून सिर्फ किसानों के लिए ही सख्त क्यों हैं।
दूसरे प्रदूषण फैलाने वालों पर कार्रवाई नहीं
दूसरे प्रदूषण फैलाने वालों पर तो इतनी सख्त कार्रवाई प्रशासन शासन अब तक नहीं कर पाया है। सैकड़ों भट्ठे, राइस मिल, फ्लोर मिल, छीनीं मिल, कपड़ा मिल, प्लांट इतना अधिक धुआं उगलते हैं कि प्रदूषण प्रभावित होता है। इन पर कभी भी कार्रवाई की बात किसी ने नहीं सुनी होगी। क्या किसान के द्वारा थोड़ी सी पराली जलाने पर वातावरण इतना अधिक प्रभावित हो जा रहा है जो इतने सख्त रवैया अपनाते हुए f.i.r. जुर्माना आदि की कार्रवाई की जा रही है।
गन्ना मूल्य और समर्थन मूल्य न देने वालों पर रिपोर्ट क्यों नहीं?
भारतीय किसान यूनियन के नेता मनजीत सिंह व चैतन्यदेव मिश्रा ने बताया कि किसानों पर सख्ती की जा रही है लेकिन जो किसानों को लूट रहे हैं उन पर एफ आई आर कराने की हिम्मत कोई नहीं कर पा रहा है। धान का किसानों को समर्थन मूल्य नहीं मिल रहा है। आज तक इस मामले में एक भी रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई है। किसानों का शोषण करने में भी रिपोर्ट होनी चाहिए। इसके अलावा चीनी मिलें किसानों का करोड़ों रुपया दबाए बैठी हैं।
मशीनी युग ने पैदा की पराली और नरई की समस्या
बुजुर्ग बताते हैं धान व गए को जड़ से काट कर उसे खलिहान में एकत्र करके बाद में दाना निकाला जाता था मशीनें थी ही नहीं इसलिए अपराधी की समस्या ही नहीं थी जब से कंबाइन मशीन आई है तब से यह दिक्कत आ खड़ी हुई है। गेहूं में तो भूसा बनाने वाली मशीनों ने नरई की समस्या का काफी हल कर दिया है परंतु धान की पराली का निस्तारण अभी भी समस्या बना हुआ है।
सरकार को कृषि वैज्ञानिकों के माध्यम से करना चाहिए उचित समाधान
लोगों का मानना है कि सरकार पराली जलाने पर एफ आई आर व जुर्माने की कार्रवाई करती है यह पर्यावरण नियमों के अनुकूल है लेकिन इससे पहले सरकार को कोई ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे किसान खेत में ही इसे गला सकें। किसानों का चैलेंज है कि अगर कोई वैज्ञानिक धान की पराली को खेत में गलाकर दिखा दे तो उसे इनाम भी देंगे परंतु अभी तक ऐसी कोई व्यवस्था नहीं हो पाई है और बिना व्यवस्था किसानों को परेशान किया जा रहा है, जो सामाजिक न्याय के भी बिल्कुल विपरीत है।
सतीश मिश्र "अचूक"
इससे अच्छा था अंग्रेजों का जमाना
बुजुर्गों का कहना है कि इतने सख्त कानून तो अंग्रेज भी किसानों के लिए नहीं लेकर आए थे जितना आज की हुकूमत अपना रही है। किसान पराली वाले इस आदेश के खिलाफ धरना प्रदर्शन तो कर ही रहे हैं कोर्ट जाने की भी तैयारी कर रहे हैं। यह बात अलग है कि पर्यावरण प्रदूषित होना बताकर उन्हें वहां से भी राहत ना मिले परंतु दूसरा पहलू यह भी है कि यह कानून सिर्फ किसानों के लिए ही सख्त क्यों हैं।
दूसरे प्रदूषण फैलाने वालों पर कार्रवाई नहीं
दूसरे प्रदूषण फैलाने वालों पर तो इतनी सख्त कार्रवाई प्रशासन शासन अब तक नहीं कर पाया है। सैकड़ों भट्ठे, राइस मिल, फ्लोर मिल, छीनीं मिल, कपड़ा मिल, प्लांट इतना अधिक धुआं उगलते हैं कि प्रदूषण प्रभावित होता है। इन पर कभी भी कार्रवाई की बात किसी ने नहीं सुनी होगी। क्या किसान के द्वारा थोड़ी सी पराली जलाने पर वातावरण इतना अधिक प्रभावित हो जा रहा है जो इतने सख्त रवैया अपनाते हुए f.i.r. जुर्माना आदि की कार्रवाई की जा रही है।
गन्ना मूल्य और समर्थन मूल्य न देने वालों पर रिपोर्ट क्यों नहीं?
भारतीय किसान यूनियन के नेता मनजीत सिंह व चैतन्यदेव मिश्रा ने बताया कि किसानों पर सख्ती की जा रही है लेकिन जो किसानों को लूट रहे हैं उन पर एफ आई आर कराने की हिम्मत कोई नहीं कर पा रहा है। धान का किसानों को समर्थन मूल्य नहीं मिल रहा है। आज तक इस मामले में एक भी रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई है। किसानों का शोषण करने में भी रिपोर्ट होनी चाहिए। इसके अलावा चीनी मिलें किसानों का करोड़ों रुपया दबाए बैठी हैं।
मशीनी युग ने पैदा की पराली और नरई की समस्या
बुजुर्ग बताते हैं धान व गए को जड़ से काट कर उसे खलिहान में एकत्र करके बाद में दाना निकाला जाता था मशीनें थी ही नहीं इसलिए अपराधी की समस्या ही नहीं थी जब से कंबाइन मशीन आई है तब से यह दिक्कत आ खड़ी हुई है। गेहूं में तो भूसा बनाने वाली मशीनों ने नरई की समस्या का काफी हल कर दिया है परंतु धान की पराली का निस्तारण अभी भी समस्या बना हुआ है।
सरकार को कृषि वैज्ञानिकों के माध्यम से करना चाहिए उचित समाधान
लोगों का मानना है कि सरकार पराली जलाने पर एफ आई आर व जुर्माने की कार्रवाई करती है यह पर्यावरण नियमों के अनुकूल है लेकिन इससे पहले सरकार को कोई ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे किसान खेत में ही इसे गला सकें। किसानों का चैलेंज है कि अगर कोई वैज्ञानिक धान की पराली को खेत में गलाकर दिखा दे तो उसे इनाम भी देंगे परंतु अभी तक ऐसी कोई व्यवस्था नहीं हो पाई है और बिना व्यवस्था किसानों को परेशान किया जा रहा है, जो सामाजिक न्याय के भी बिल्कुल विपरीत है।
सतीश मिश्र "अचूक"
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